भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र* आज बड़े आनन्द का दिन है कि छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को एक बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत है। हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास , सेकेण्ड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े-बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजन सब नहीं चल सकतीं , वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए ' का चुप साधि रहा बलवाना ' फिर देखिए हनुमान जी को अपना बल कैसे याद आता है। सो बल कौन याद दिलावे। या हिन्दुस्तानी राजेमहाराजे , नवाब , रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा , भोजन , झूठी गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सरकारी काम घेरे रहता है , कुछ बाल घुड़दौड़ थियेटर में समय लगा। कुछ समय बचा भी तो उनको क्या गरज है कि हम गरीब गन्दे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवें। बस वही मसल रही। "तुम्हें गैरों से कब फुरसत हम अपने गम से कब खाली। चलो बस हो चुका मिलना न हम खाली न तुम खाली।" पहले भी जब आर्य लोग हिन्दुस्तान