भारतीय जीवन परंपरा में योग का महत्व : भूपेंद्र रावत
योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और इसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता की शुरूआता हुई, तभी से योग किया जा रहा है। योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, योग ही है जिसकी मदद से हम अपने शरीर, मन और आत्मा को एक साथ ला सकते है। योग को लेकर कई विद्ववानों ने अपने अपने मत रखे हैं जिनमें मुख्य रूप से दो प्रमुख हैं। गीता में लिखा है 'योग: कर्मसु कौशलम्' अर्थात् फल की इच्छा के बिना कर्म की कुशलता ही योग है और महर्षि पतंजलि जिन्हें योग गुरु या जनक माना जाता है उनके अनुसार, 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:' यानी मन की इच्छाओं को संतुलित बनाना योग कहलाता है। महर्षि पतंजलि ने योग को आठ भागों (नियमों) में बांटा है जिसे 'अष्टांग योग' कहते हैं : यम : इसमें सत्य व अहिंसा का पालन करना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्या का पालन व ज्यादा चीजों को इक्कठा करने से बचना शामिल है। नियम : ईश्वर की उपासना, स्वाध्याय, तप, संतोष और शौच महत्वपूर्ण माने गए हैं। आसन : स्थिर की अवस्था में बैठकर सुख की अनुभूति करने को आसन कहते हैं। प्राणायाम : सांस की गति को धीरे-धीरे वश में