15 अगस्त 1947, के दिन जब देश 200 साल की अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हुआ , तो जहां एक ओर देश के आज़ाद होने की खुशी थी , तो वहीं दूसरी तरफ विभाजन का दर्द भी भारत के नसीब में लिखा जा चुका था। स्वतंत्रता मिलने के साथ ही देश के दो टुकड़े हो गए। भारत का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा कटकर एक नया देश पाकिस्तान बना। राजधानी दिल्ली एक तरफ आज़ादी का जश्न मनाने के लिए तैयार हो रही थी। लाल किले पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देश के स्वाधीन होने की घोषणा की। एक तरफ देश आज़ादी का जश्न मना रहा था , तो वहीं दूसरी ओर देश का एक हिस्सा धू-धू कर जलने लगा। हिन्दुस्तान बंटवारे की त्रासदी से गुजर रहा था। खुशी का मौका पलभर में खून और दहशत में बदल गया था। कम से कम डेढ़ करोड़ लोग अपना घर-बार छोडने पर मजबूर हो गए। इस दौरान हुई लूटपाट , बलात्कार और हिंसा में कम से कम पंद्रह लाख लोगों के मरने और अन्य लाखों लोगों के घायल होने का अनुमान है. बंटवारे में न सिर्फ देश को बांटा गया बल्कि लोगों के दिल भी बांटने की कोशिश की गयी। विभाजन के इसी दर्द को भारतीय साहित्यकार
वीरांगना नांगेली वीरांगना नांगेली का प्रतीकात्मक चित्र* आपने इस ब्लॉग पेज पर प्रतिरोध कविता का अध्ययन अवश्य किया होगा। उसी प्रतिरोध के स्वर को सन 1924 में मुखरित करने वाली स्त्री रही थी ‘वीरांगना नांगेली’। जिसके द्वारा प्रज्जवलित की गयी संघर्ष और प्रतिरोध की ज्वाला ने तथाकथित निम्न वर्ग के साथ होने वाले विचित्र और निकृष्ट सामाजिक भेदभावों रूपी दीवार को धराशायी कर दिया। निचले तबके के साथ किये जाने वाले भेदभाव, उससे उपजी असंतुष्टि और उसके विरोध में संघर्ष के साथ नांगेली की यह विद्रोही पुकार केरल के उस त्रावणकोर जिले से मुखरित हुई थी, जिसका अस्तित्व सन 1924 में एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में था। इस साम्राज्य में उच्च जातियों के सम्मान का सूचक बनाकर एक ऐसे कानून को सामंतशाही द्वारा तथाकथित निम्न वर्ग की स्त्रियों पर लागू कर दिया गया था, जिसके अंतर्गत अपने शरीर के ऊपरी हिस्से अर्थात् स्तनों को सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी कपड़े आदि से ढंंकने की मनाही थी, क्योंकि ऐसा करना उच्च जाति वर्ग के लोगों को सम्मान देना समझा जाता था। इस कानून की अवहेलना करने पर एक मोटी धनराशि कर के रूप में वसूल क
तमाम भारतवासियों के लिए आज यह बेहद ही गौरवान्वित करने वाली ख़बर है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को पारित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भाषाओं में हिंदी को शामिल कर लिया है। प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के कामकाज में हिंदी व अन्य भाषाओं को भी बढ़ावा देने का पहली बार जिक्र किया गया है। आइए जानते हैं इसके क्या मायने हैं और भारत के लिए यह कितनी बड़ी सफलता है? UNGA आधिकारिक भाषाएं : संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी (मैंडरिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं। इसके अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकामी भाषाएं हैं। लेकिन अब इनमें हिंदी को भी शामिल किया गया है। इसका साफ मतलब यह है कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज, उसके उद्दश्यों की जानकारी यूएन की वेबसाइट पर अब हिंदी में भी उपलब्ध होगी। यूएन का बहुभाषावाद प्रस्ताव : एक फरवरी 1946 को पहले सत्र में UNSC ने एक प्रस्ताव पास किया था। प्रस्ताव 13(1) के तहत यूएन ने कहा था, संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक दुन
चित्र : प्रतीकात्मक चित्र* आज मैं आप सभी से एक बेहद ही गंभीर और संवेदनशील विषय पर चर्चा करना चाहती हूँ। विषय है – Marital Rape या हिंदी भाषा में कहें तो वैवाहिक बलात्कार। बलात्कार के आगे लगे इस वैवाहिक शब्द को पढ़कर अचंभित मत हों , क्योंकि भारतीय समाज में इस शब्द को भले ही गंभीर और चिंतनीय न समझा जाता हो , परंतु इस शब्द और विषय की गंभीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि विश्व के अनेक देशों ने इस स्थिति को संवैधानिक रूप से अपराध घोषित कर सज़ा तक का प्रावधान किया है। दरअसल ‘ वैवाहिक बलात्कार ’ विषय के रूप में बीते दिनों भारी चर्चा का विषय बना रहा। कारण है - दिल्ली हाईकोर्ट में वैवाहिक बलात्कार के एक मामले पर आया फैसला , जिसमें दो जजों की बेंच ने इसके निर्णय पर विभाजित फैसला सुनाया। हाईकोर्ट के इस विभाजित फैसले ने मेरा ध्यान भी इस विषय की ओर आकर्षित किया। अपनी सामाजिक व संवैधानिक समझ का विस्तार करने के उद्देश्य से मैंने भी इस विषय पर अध्ययन तथा चिंतन आरम्भ किया, जिसमें कुछ गंभीर प्रश्न मेरे सामने उपस्थित हुए। प्रश्न था - कि जब भारतीय दंड संहिता की धारा 498 व 498 A के तह
चित्र : एस. पेचियामल्ल आज मैं आप सभी के समक्ष दो अलग-अलग स्त्रियों के जीवन संघर्ष को प्रस्तुत करना चाहती हूँ जिन्होंने सामाजिक बेड़ियों, वर्जनाओं और मानसिक तथा शारीरिक प्रताडनाओं के बावजूद दृढ़तापूर्वक विपरीत परिस्थितियों के सक्षम हार नहीं मानी। इन जिंदगियों पर मेरे द्वारा किया गया यह मंथन है जो आज के आधुनिक दौर में भी समाज की न बदलती हुई तस्वीर को हमारे समक्ष उकेर कर रख देता है जिसमें स्त्रियों को अन्य पर निर्भर होने के कारण ही नहीं बल्कि स्वावलंबी बनने के क्रम में भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना व शोषण का शिकार होना पड़ता है। इसमें एक कथा है तमिलनाडु राज्य के थूथुकड़ी जिले के कट्टुनायकमपट्टी नामक गाँव में 36 वर्षों से पुरुष बनकर जीवन जीने के लिए मजबूर होने वाली एस. पेचियामल्ल की। जिसे 20 वर्ष की उम्र में विवाह के उपरान्त मात्र 15 दिन के भीतर ही वैधव्य का भार झेलना पड़ा। पति के देहांत के लगभग नौ माह पश्चात् जनम हुआ उसकी बेटी का जिसके पालन-पोषण का प्रश्न एस. पेचियामल्ल के सामने आ खड़ा हुआ। इसके लिए महिला ने किसी से भी आर्थिक सहायता लेने की बजाय स्वयं की मेहनत से जीवन यापन का प्रयास किया
*फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एक बेमिसाल शायर थे। उनकी शायरी में अहसास, बदलाव, प्रेम और सुकुन सब कुछ था। वो भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर थे, जिन्हें अपनी क्रांतिकारी रचनाओं में रसिक भाव के मेल की वजह से जाना जाता है। सेना, जेल तथा निर्वासन में जीवन व्यतीत करने वाले फ़ैज़ ने कई नज़्में और ग़ज़लें लिखी तथा उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी दौर की रचनाओं को सबल किया। उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया था। फ़ैज़ पर कई बार कम्यूनिस्ट होने और इस्लाम से इतर रहने के आरोप लगे थे पर उनकी रचनाओं में ग़ैर-इस्लामी रंग नहीं मिलते। जेल के दौरान लिखी गई उनकी कविता 'ज़िन्दान-नामा' को बहुत पसंद किया गया था। प्रोफ़ेसर मुहम्मद हसन लिखते हैं कि - फ़ैज़ को ज़िंदगी और सुन्दरता से प्यार है- भरपूर प्यार और इसलिए जब उन्हें मानवता पर मौत और बदसूरती की छाया मंडराती दिखाई देती है, वह उसको दूर करने के लिए बड़ी से बड़ी आहुति देने से भी नहीं चूकते। उनका जीवन इसी पवित्र संघर्ष का प्रतीक है और उनकी शायरी इसी का संगीत। पेश हैं फ़ैज़ अहमज फ़ैज़ की लिखी ग़ज़लों से मशहूर शेर : दिल
चित्र : ग्रीन हाइड्रोजन प्रतीक चित्र* ग्रीन हाइड्रोजन क्या है ? ग्रीन हाइड्रोज एक तरह की स्वच्छ ऊर्जा है , जो रीन्युबल एनर्जी जैसी सोलर पावर का इस्तेमाल कर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बांटने से पैदा होती है। बिजली जब पानी से होकर गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है। ये हाइड्रोजन कई चीजों के लिए ऊर्जा का काम कर सकती है। हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली रिन्युबल एनर्जी स्त्रोत से आती है। लिहाजा इससे प्रदूषण नहीं होता है। इसीलिए इसे ग्रीन हाइड्रोजन कहते हैं। ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन कहा जाता है और भविष्य में भारत ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनेगा। ग्रीन हाइड्रोजन से कार्बन नहीं निकलता , इसका इस्तेमाल कार , बस , हवाई जहाज , जहाज , रॉकेट में किया जा सकता है। यह कम खपत में ज़्यादा चलता है , पेट्रोल डीज़ल से 3 गुना पावरफुल और अच्छा होता है। अब प्रश्न उठता है कि यह अभी तक क्यों इसका इस्तेमाल नहीं होता था? तो दिक्क्त ये है कि ग्रीन हाइड्रोजन का प्रोडक्शन बहुत महंगा है। पेट्रोल की तुलना में इसका रेट 3 गुना है। ग्रीन हाइड्रोजन 350-400 रुपए किलो के हिसाब से बिकता है।
सांवले रंग , नाटे कद और कमीज़-पतलून के सीधे-सादे परिधान में सुबह-सुबह बाबूजी अपने विद्यालय चले जाया करते थे। उनके व्यक्तित्व में विशेष प्रकार की जिजीविषा थी। वे सदा मंद मुस्कान लिए घर से रुकसत होते थे। उनका चेहरा साधारण था परंतु फिर भी आकर्षक था। उनके चेहरे पर चेचक के गहरे दाग थे परंतु इससे किसी भी प्रकार की कुरूपता न आई थी। सभी से नमस्कार करते हुए जब वे अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते थे तब ऐसा प्रतीत होता था जैसे कोई शिक्षक नहीं बल्कि कोई निर्दोष विद्यार्थी विद्यालय जा रहा हो। बाबूजी का मानना भी था कि एक शिक्षक को जीवन भर एक विद्यार्थी बने रहना चाहिए। ताकि वो सीखने-सिखाने की परंपरा में सदैव सशक्त बना रहे। इन सबके बीच उनकी प्रिय एवं सहयोगी साथी उनके साथ ज़रूर होती थी जो उन्हें उनके गंतव्य तक प्रतिदिन पहुंचाती थी। उनके व्यक्तिव को वो पूर्ण-रूपेण सार्थक करती थी। वो निरंतर आगे बढ़ने का परिचायक थी और वह थी उनकी साईकिल। बाबूजी ने न जाने कितने मेले , बगीचों आदि की सैर हम दोनों भाईयों को करायी थी। पीछे मैं , सीट पर बाबूजी और साईकिल के अगले डंडे पर एक सीट बनवा दी गई थी ज
In 1609, the entire Muslim population of Spain was given three days to leave Spanish territory or else be killed. In a brutal and traumatic exodus, entire families were forced to abandon the homes and villages where they had lived for generations. In just five years, Muslim Spain had effectively ceased to exist; an estimated 300,000 Muslims had been removed from Spanish territory making it what was then the largest act of ethnic cleansing in European history. Blood and Faith is a riveting chronicle of this virtually unknown episode, set against the vivid historical backdrop of Muslim Spain. It offers a remarkable window onto a little-known period in modern Europe-a rich and complex tale of competing faiths and beliefs, of cultural oppression and resistance against overwhelming odds.
एक गाय हमेशा जंगल जाती थी. उसका एक बछड़ा था. गाय जिस दिन हरी-हरी घास से पेट भर खाती उस दिन बछड़ा छककर दूध पीता. बछड़े को अधिक दूध पिलाने की लालसा में गाय जंगल में दूर-दूर तक निकल जाती. हरी घास का लोभ उसे संवरण नहीं हो पाता था. घास चरते-चरते एक दिन गाय काफी दूर निकल गयी. जंगल में एक बाघ था. बाघ की नजर जैसे ही गाय पर पड़ी तो वह खुशी से झूम उठा. वह गुर्राया, डर के मारे गाय की हालत पतली हो गयी. वह बोली, “घर पर मेरा एक बछड़ा है. जब मैं भरपेट घास नहीं चरती तो छककर उसे दूध नहीं पिला पाती. वह मेरा इन्तजार कर रहा होगा, आज मुझे नहीं खाओ. मुझे घर जाने दो. उसे दूध पिलाकर मैं लौट आऊंगी.” गाय की बात पर बाघ खूब हंसा-बोला, “मुझे बेवकूफ समझ रही हो. एक बार जान बचाकर जाओगी तो फिर क्यों आओगी. मुझे तो भूख लगी है- मैं तुझे अपना भोजन बना कर रहूंगा.” गाय ने बड़ी मिन्नतें कीं. आखिकार वह बाघ को विश्वास दिलाने में सफल हो गई. बाघ का मन बछड़े की बात पर पिघल गया- फिर भी उसने गुर्राते हुए कहा, “मैं तेरे लौटने की प्रतीक्षा करूंगा. वरना घर पर आकर तुझे और तेरे बछड़े को भी मार कर खा जाऊंगा.” गाय के कंठ में अटके प्राण वा
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