मीर तक़ी मीर की चुनिंदा ग़ज़लें
आवेगी मेरी क़ब्र से आवाज़ मेरे बा'द
उभरेंगे इश्क़-ए-दिल से तिरे राज़ मेरे बाद
शम-ए-मज़ार और ये सोज़-ए-जिगर मिरा
हर शब करेंगे ज़िंदगी ना-साज़ मेरे बाद
बिन गुल मुआ ही मैं तो प तू जा के
लौटियो
सेहन-ए-चमन में ऐ पर-ए-पर्वाज़ मेरे बाद
दिल लगा हो तो जी जहाँ से उठा
मौत का नाम प्यार का है इश्क़
क्या
हक़ीक़त कहूं कि क्या है
इश्क़
हक़-शनासों के हां ख़ुदा है इश्क़
और तदबीर
को नहीं कुछ दख़्ल
इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़
क्या डुबाया मुहीत में ग़म के
हम ने जाना था आश्ना है इश्क़
इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़
कोहकन क्या पहाड़ काटेगा
पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़
इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम किया है इश्क़
कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुंचा
आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़
'मीर' मरना पड़े है ख़ूबां पर
इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़
जीना मिरा तो तुझ को ग़नीमत है ना-समझ
खींचेगा कौन फिर ये तिरे नाज़ मेरे बाद
करता हूँ मैं जो नाले सर-अंजाम बाग़ में
मुँह देखो फिर करेंगे हम आवाज़ मेरे बाद
बैठा हूँ 'मीर' मरने को
अपने में मुस्तइद
पैदा न होंगे मुझ से भी जाँबाज़ मेरे बाद
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