अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च : अभिनव
(चीन द्वारा गलवान क्षेत्र पर आक्रमण के संदर्भ में लिखित कविता)
मुझे बुद्ध का उपदेश ध्येय नहीं, गाँधीजी
का अहिंसा व्रत भूल जाओ,
‘आल्हा’ का वीरगान
बजे बस, शत्रु
खेमे में हाहाकार मचाओ,
ना’पाक को
बाद में देखेंगे,
पहले
अक्साई में विजय पताका लहराओ,
हाथ में अंबुज केसरिया, श्वेत, हरित सब
रंग मिल जाओ,
अमर वीरगाथा झाँसी की रानी, नेताजी
सुभाष का स्मरण कराओ,
मरे वीर प्रहरी आर्य धरा के, अब न कोई
प्राण गँवाओं,
एक-एक आर्य पुत्र दस को काटे, रण की ऐसी
भेरी सुनाओ,
भले नाम है चीनी शत्रु का, मधुरता की
आशा किन्तु भूल जाओ,
बहुत क्षमा मिली इन दैत्यों को, मानवता का
इन्हें अब पाठ पढ़ाओ,
बहुत हुआ मैत्री का संदेश, होती क्या
है शत्रुता इन्हें केवल सबक सिखाओ,
माँ भारती के लालों को श्रद्धांजलि देने
वाले बुद्धिजीवियों,
कभी सीमा
पर लड़ने भी जाओ,
क्रोध भरा हिन्द धरा के मनुजों में, शत्रु
रक्त से अब शांत कराओ,
या तो वह रह जाएँ या हम, अब आर-पार
का युद्ध किन्तु लड़ जाओ,
बारम्बार श्वेत हिमालय शोणित हुआ, अब
मानसरोवर भी वापस लाओ,
सिंह धरा के वीरों, हिन्दी-चीनी
भाई-भाई की नीति में न आओ,
दुष्ट बैरी सम दुर्योधन की तोड़ जंघा, दु:शासन
की फाड़ छाती रक्त पी जाओ,
‘अहिंसा
परमो धर्म:’ का देते
जो नारा ‘धर्म हिंसा तथैव च’ का वचन
उन्हें सुनाओ।
अभिनव,
नई
दिल्ली।
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