ज़ब भी चिराग जला है : भूपेंद्र रावत
न जाने क्यों शोर मचाती है ख़ामोशी मेरी
न जाने क्यों सताती है मुझे खामोशी मेरी
जब एक ही डगर है अपने इस सफ़र की
फिर किस ओर ले जाती है खामोशी मेरी
अगर रूठना भी चाहूं तुझ से मैं
फ़क़त तेरा ही नाम गुनगुनाती है ख़ामोशी मेरी
शिक़वे गीले करके क्या मिला है
जब भी मिला है,दर्द ही मिला है
जब भी चिराग़ जला है
मोहब्बत का शम्मा जलाने से मिला है
चिराग बुझा है हर बार
जितनी बार गिलों शिकवों को बढ़ावा मिला है
खोखले हो चुकें है रिश्ते सारे
फ़िज़ाओं में भी ज़हर घुल आ मिला है
दम घुटता है, चार दीवारी में "भूपेंद्र"
कैसा ये सिला मुझकों मिला है
-भूपेंद्र रावत
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