सत्य वचन (उत्तराखंड की लोक कथा) : भूपेंद्र रावत
एक गाय हमेशा जंगल जाती थी. उसका एक बछड़ा था. गाय जिस दिन हरी-हरी घास से पेट भर खाती उस दिन बछड़ा छककर दूध पीता. बछड़े को अधिक दूध पिलाने की लालसा में गाय जंगल में दूर-दूर तक निकल जाती. हरी घास का लोभ उसे संवरण नहीं हो पाता था. घास चरते-चरते एक दिन गाय काफी दूर निकल गयी. जंगल में एक बाघ था. बाघ की नजर जैसे ही गाय पर पड़ी तो वह खुशी से झूम उठा. वह गुर्राया, डर के मारे गाय की हालत पतली हो गयी. वह बोली, “घर पर मेरा एक बछड़ा है. जब मैं भरपेट घास नहीं चरती तो छककर उसे दूध नहीं पिला पाती. वह मेरा इन्तजार कर रहा होगा, आज मुझे नहीं खाओ. मुझे घर जाने दो. उसे दूध पिलाकर मैं लौट आऊंगी.” गाय की बात पर बाघ खूब हंसा-बोला, “मुझे बेवकूफ समझ रही हो. एक बार जान बचाकर जाओगी तो फिर क्यों आओगी. मुझे तो भूख लगी है- मैं तुझे अपना भोजन बना कर रहूंगा.” गाय ने बड़ी मिन्नतें कीं. आखिकार वह बाघ को विश्वास दिलाने में सफल हो गई. बाघ का मन बछड़े की बात पर पिघल गया- फिर भी उसने गुर्राते हुए कहा, “मैं तेरे लौटने की प्रतीक्षा करूंगा. वरना घर पर आकर तुझे और तेरे बछड़े को भी मार कर खा जाऊंगा.” गाय के कंठ में अटके प्राण वा