महिला सशक्तिकरण या समाज का सच : दीपाली
आज मैं आप सभी के समक्ष दो अलग-अलग स्त्रियों के
जीवन संघर्ष को प्रस्तुत करना चाहती हूँ जिन्होंने सामाजिक बेड़ियों, वर्जनाओं और
मानसिक तथा शारीरिक प्रताडनाओं के बावजूद दृढ़तापूर्वक विपरीत परिस्थितियों के
सक्षम हार नहीं मानी। इन जिंदगियों पर मेरे द्वारा किया गया यह मंथन है जो आज के
आधुनिक दौर में भी समाज की न बदलती हुई तस्वीर को हमारे समक्ष उकेर कर रख देता है
जिसमें स्त्रियों को अन्य पर निर्भर होने के कारण ही नहीं बल्कि स्वावलंबी बनने के
क्रम में भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना व शोषण का शिकार होना पड़ता है। इसमें एक
कथा है तमिलनाडु राज्य के थूथुकड़ी जिले के कट्टुनायकमपट्टी नामक गाँव में 36
वर्षों से पुरुष बनकर जीवन जीने के लिए मजबूर होने वाली एस. पेचियामल्ल की। जिसे
20 वर्ष की उम्र में विवाह के उपरान्त मात्र 15 दिन के भीतर ही वैधव्य का भार
झेलना पड़ा। पति के देहांत के लगभग नौ माह पश्चात् जनम हुआ उसकी बेटी का जिसके
पालन-पोषण का प्रश्न एस. पेचियामल्ल के सामने आ खड़ा हुआ। इसके लिए महिला ने किसी
से भी आर्थिक सहायता लेने की बजाय स्वयं की मेहनत से जीवन यापन का प्रयास किया
जिसके लिए होटलों, चाय की दुकानों तथा इंडस्ट्रियल साइट आदि पर जाकर मजदूरी की
परंतु स्त्री होकर स्वावलंबी बनने और बेटी के लालन-पालन की चाह के इस क्रम में
एस. पेचियामल्ल को इन सभी जगहों पर शारीरिक तथा मानसिक यातनाओं व उत्पीडन का सामना
करना पड़ा। भारतीय समाज के इस घिनौने रूप के समक्ष घुटने टेकने की बजाय पेचियामल्ल
को समाज के इन भेडियों की नजरों से बचते हुए जीवन यापन के उद्देश्यपूर्ति हेतु
अपनी अस्मिता और स्त्री अस्तित्व का त्याग कर पुरुष बनने का कठोर फैसला लेने पर
मजबूर कर दिया। जिसके लिए एस.पेचियामल्ल ने तिरुचेंदुर मुर्गन मंदिर में जाकर
अपने केश दान किये और एक नए नाम मुथू के साथ लुंगी तथा शर्ट पहनना आरम्भ कर दिया। बीते
36 वर्षों से एस. पेचियामल्ल इसी समाज में इसके शोषणकारी तत्वों से स्वयं की रक्षा
करते हुए अपनी पहचान को भुलाकर पुरुष का जीवन जी रही हैं जिसे उन्होंने अब सहज ही स्वीकार
भी कर लिया है।
दूसरा जीवन संघर्ष है भारतीय महिला क्रिकेट टीम की
सबसे युवा खिलाड़ी शेफाली वर्मा का जिनका जन्म हरियाणा के रोहतक में हुआ और जिन्होंने
मात्र नौ साल की आयु में सचिन तेंदुलकर जेसा बल्लेबाज बनने का निश्चय किया। उस
छोटी-सी आयु में बिना यह विचारे कि पुरुष प्रधान इस समाज में किसी महिला का
क्रिकेटर बनने का सपना शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी मुश्किल होने वाला
था। हुआ भी कुछ ऐसा ही जिसमें शेफाली को पुरुषों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट को
खेलते हुए देखकर शेफाली तथा उनके परिवार को समाज के लोगों के लोगों के तानों तथा
कटु शब्दों का सामना करना पड़ा जिसका परिवार के सहयोग के कारण बहुत अधिक प्रभाव
शेफाली पर नहीं पड़ा परंतु फिर भी लोगों की नजरों से खुद को बचाकर स्वतंत्र रूप से
क्रिकेट का अभ्यास करने के उद्देश्य से शेफाली ने अपने बाल कटवा दिए जिससे एकेडमी
तथा खेल के मैदानों में अभ्यास के दौरान क्रिकेट देखने वाले उन्हें खेलते हुए
देखकर लड़की समझने की बजाय लड़का ही समझें। आगे बालों का छोटा होना एस. पेचियामल्ल
की तरह शेफाली वर्मा ने भी अपनी पहचान ही बना लिया। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर क्रिकेट खेलने वाली यह महिला धुआंधार खिलाड़ी आज भी अपने उन्हीं छोटे बालों
के कारण अलग से पहचानी जा सकती है।
इस प्रकार दोनों ही स्त्रियों के जीवन को देखने पर हम पाते हैं सामाजिक विकृति और
विपरीत परिस्थितियों के समक्ष सफलतापूर्वक खड़े रहकर एस. पेचियामल्ल द्वारा 36
वर्षों से पुरुष बनकर अपनी बेटी का सुरक्षित लालन-पालन कर जीवन यापन करना तथा
शेफाली वर्मा का अपने बालों को कटवाकर लड़की से लड़के की तरह दिखने का प्रयास करते
हुए क्रिकेट का अभ्यास कर क्रिकेट के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल करना जहाँ महिला
सशक्तिकरण का प्रबल उदाहरण पेश करता है वहीं हमारे समाज की उस कटु और दमघोंटू
सच्चाई को भी उजागर करता है जहाँ स्त्रियों को सामाजिक बेड़ियों में जकड़े हुए तथा
लीक से हटकर चलने का प्रयास करते हुए दोनों ही स्थितियों में अनेकों शारीरिक तथा
मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। समाज की यह स्थिति सोचनीय है जिस पर आज भी
हमें चिंतन तथा मंथन करने की आवश्यकता है।
दीपाली
पीएच.डी. शोधार्थी
दिल्ली विश्वविद्यालय
* उपरोक्त दोनों चित्र सोशल मीडिया से प्राप्त
बहुत ही सुंदर लेखन और बदलते दोर की तस्वीर बया करने वाली लेखनी।
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