काश में एक परिंदा होता : मनोज कुमार
काश में एक परिंदा होता
न मेरा कोई घर होता, न कोई मेरा देश होता
न कोई धर्म होता, न कोई मजहब होता
न मैं हिन्दू होता, न कोई मुसलमा होताकाश मैं एक परिंदा होता।
बहता इन हवाओं में
गूंजता इन फ़िज़ाओं में,
ये सारी धरा अपनी ये सारा आसमा अपना होता
काश में एक परिंदा होता।
न मुझ में कोई भय होता
न कोई ईष्या
बिना कोई छल कपट के ये सारा जहां अपना होता
काश मै एक परिंदा होता
- मनोज कुमार
बहुत खूब
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